Thursday, December 16, 2010

॥ बड़ी लगन से चला ढूँढने ॥


बड़ी लगन से चला ढूँढने,
अपने सुन्दर श्याम को।
मन-मोहक मन-मोहन,
नंद कुँवर घनश्याम को॥

वृन्दावन प्यारा है उनको,
वहीं तो वह रमते हैं।
मन ने कहा अरे बावरे,
हम भी वहीं चलते है॥

न बंशी बजी न गैया दौडीं,
न ही लौटे वनचारी।
न गोपियाँ सज रहीं,
न संवर रही राधिका प्यारी॥

कुँज गलीयों में ढूंढा,
मन्दिर में ढूंढा माखन चोर।
मिल जाये कहीं वह,
छाछ पर नाचता नंद किशोर॥

सुबह से हो गयी शाम,
पर नही मिले घनश्याम।
कुँज वनों में पुकारा,
निधिवन भी छान डाला॥

गैया दिखीं ग्वाले दिखे,
दिखी वो कदम्ब की डाल।
जब खोजा अपने घट में,
बंशी बजाते मिले गोपाल॥

बड़ी लगन से चला ढूँढने,
अपने सुन्दर श्याम को।
मन-मोहक मन-मोहन,
नंद कुँवर घनश्याम को॥