Thursday, December 1, 2011

॥ मन के उपवन में फूल खिले ॥


प्रभु नाम की लगी लगन, तन के आंगन में दीप जले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

नीरस हर पल था जीवन, इक पग चलना भी था दूभर,
काम क्रोध मद लोभ लुटेरे, अनेक जन्म के बैरी मिले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

क्षितिज पर रहती थी नज़र, इंद्रधनुष रूप आते थे नज़र,
अधरों को न मुस्कान मिले, दिल को भी न चैन मिले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

सोचता था कैसे बच पाऊंगा, जग की ठोकरें खाने से,
कभी कोई रास्ता भटकाता, तो कभी कोई राह न मिले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

तपती धूप में जलते पाँव, पता न था कब मिलेगी छाँव,
मैं सपना तुम हो हकीकत, साथ यह अपना सदा चले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

प्रभु नाम की लगी लगन, तन के आंगन में दीप जले।
जब से तुम आये मोहन, मन के उपवन में फूल खिले॥

Monday, April 25, 2011

॥ इक दिन यहाँ से जाना है ॥


तन को स्वयं न समझ रे,
यह माटी में मिल जाना है।
चार कांधों की करके सवारी,
ढ़ोल बाजे संग जाना है॥

उड़ जायेगा हँस अकेला,
तन तो माटी बन जाना है।
राधे-कृष्ण निष्काम भज ले,
इक दिन यहाँ से जाना है॥

मात-पिता का कहा मानकर,
नियत कर्तव्य निभाना है।
गुरु वचनों पर श्रद्धा रखकर,
कृष्णा में ध्यान लगाना है।

सत वचनो से निर्मल होकर,
सभी को सुख पहुँचाना है॥
राधे-कृष्ण निष्काम भज ले,
इक दिन यहाँ से जाना है॥

माया के आधीन होकर भी,
गोविन्द को न बिसराना है।
सब में अपने प्रभु को देख,
प्रभु का हुकुम बजाना है॥

प्रभु भक्ति से पावन होकर,
प्रभु चरणों में मिल जाना है।
राधे-कृष्ण निष्काम भज ले,
इक दिन यहाँ से जाना है॥

काम क्रोध मद लोभ त्याग,
मन में आनन्द जगाना है।
जगत की शरण छोड़,
जगदीश शरण में जाना है॥

प्रभु भक्तों का सेवक बन,
पल-पल मौज मनाना है॥
राधे-कृष्ण निष्काम भज ले,
एक दिन यहाँ से जाना है॥

Saturday, April 9, 2011

॥ प्रेम बिना जीवन नही होता ॥


जल बिना सागर नहीं होता,
सागर बिना सीप नहीं होती।
सीप बिना मोती नहीं होता,
मोती बिना माला नहीं होती॥

माला बिना जप नहीं होता,
जप बिना प्यार नहीं होता।
प्यार बिना जग नहीं होता,
प्रेम बिना जीवन नहीं होता॥

सत्य बिना सत्संग नहीं होता,
सत्संग बिना अज्ञान नहीं मिटता।
अज्ञान बिना मिटे कर्म नहीं होता,
कर्म बिना अनुभव नहीं होता॥

अनुभव बिना ज्ञान नहीं होता,
ज्ञान बिना प्रकाश नहीं होता।
प्रकाश बिना दर्शन नहीं होता,
प्रेम बिना जीवन नहीं होता।

Sunday, March 20, 2011

॥ जब मैं पिया संग खेली होरी ॥


मच गयी हलचल होरी की,
और चलने लगी पिचकारी।
अबीर गुलाल रंगत टेसू की,
और केसर की महकारी॥

सुध-बुध बिसर गयी तन की,
रसिया ऎसी केसर घोरी।
तन-मन मेरो ऎसो भीगो,
जब मैं पिया संग खेली होरी॥

हिय में मारी ऎसी पिचकारी,
मली मुख कपोलन रोरी।
अलकन लाल पलकन लाल,
तन-मन लाल भयो री॥

प्रेम के रंग में हुई लाल मैं,
ऎसो प्रेम सुधा-रस बोरी।
तन-मन मेरो ऎसो भीगो,
जब मैं पिया संग खेली होरी॥

होरी खेल रहे मनमोहन,
संग में खेल रही प्यारी।
प्रेम रंग में भीगी राधिका,
और भीगे कृष्ण मुरारी॥

प्रिया-प्रीतम के प्रेम में रंग,
जुड़ गयी प्रीत की डोरी।
तन-मन मेरो ऎसो भीगो,
जब मैं पिया संग खेली होरी॥

Friday, March 11, 2011

॥ मनवा गोविन्द के गुण गा ले ॥


छोड़ के सारे बन्धन जग के,
कृष्णा से प्रीत लगा ले।
गोविन्द के गुण गा ले,
मनवा गोपाल के गुण गा ले॥

भुगत लिये सुख-दुख जग के,
सभी अरमान निकाले।
अब भी समय है मूरख वन्दे,
जी भर कर पछता ले॥

यहाँ सभी को मिलते धोखे,
किन-किन से पड़ते पाले॥
गोविन्द के गुण गा ले,
मनवा गोपाल के गुण गा ले॥

जगत के सब आकर्षण नश्वर,
सब हैं तेरे देखे भाले।
भटक रहा अब तक प्यारे,
पग-पग मिले तुझे छाले॥

कर ले भक्ति प्रभु की अब,
कृपा कृष्ण की तू पा ले।
गोविन्द के गुण गा ले,
मनवा गोपाल के गुण गा ले॥

जाने किन-किन पापों से,
कितने ही घट भर डाले।
तोड़ दे घटों को अब तो,
कहीं पड़ न जायें लाले॥

छोड़ के सारे बन्धन जग के,
कृष्णा से प्रीत लगा ले।
गोविन्द के गुण गा ले,
मनवा गोपाल के गुण गा ले॥


Wednesday, March 9, 2011

॥ कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो ॥


अंधेरे से निकलकर चांदनी में नहाकर तो देखो।
जिन्दगी क्या है कभी आवरण हटाकर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

उपवन महकता हैं जैसे जीवन भी महक उठेगा।
कन्हैया का नाम दिल से पुकार कर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

कृष्ण सितारा है चमकता रहेगा सदा आँखों में।
दिखलाई देगा ज़रा तन से मन हटाकर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

आँखों के रास्ते किस पल दिल में उतर जायेगा।
सांवरे की छवि को मन में निहार कर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

दीवारों की भी भाषा होती है आवाज भी होती हैं।
अपने मन-मन्दिर की दीवार सजाकर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

दूरियाँ नज़रों की इस जहाँ में सिर्फ़ एक धोखा है।
कान्हा मिलेगा उसकी ओर हाथ बढ़ाकर तो देखो॥
कौन है अपना कृष्णा से दिल लगाकर तो देखो॥

Friday, March 4, 2011

॥ अब कृष्णा ही तो मेरा है ॥


न यह मेरा है न तेरा है,
यह जग तो रैन बसेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

जाने कितनी ठोकर खाकर,
मुश्किल से राहें मिलती हैं,
मंज़िल पाकर राही कहता,
यही मुकाम तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

सागर से ही बूँदें बनकर,
सागर में ही मिल जाती हैं,
बारिश की हर बूँदें कहती,
यह सागर ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

अनेकों रंग अनेकों गंध,
जाने कितने फूल हैं खिलते,
वन की हर पत्ती कहतीं,
यह उपवन ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

मिट्टी का बना हर आदमी,
मिट्टी में मिल जाता है,
भूमि का हर कण कहता,
यह भूमंडल ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

जग की चकाचौंध देखकर,
हर पल ख़ुशी तरसती हैं,
प्रारब्ध का हर पल कहता,
यह वक्त ही तो मेरा है।
जो भी चाहे जैसा समझे,
अब कृष्णा ही तो मेरा है॥

Tuesday, February 22, 2011

॥ कितने रूप दिखा गया कृष्णा ॥


सांवरी सूरत मोहिनी मूरत के,
कितने रूप दिखा गया कृष्णा।
कभी प्रेमी कभी सारथी बन,
गुरु का धर्म निभा गया कृष्णा॥

विराट रूप दिखाकर ब्रह्माण्ड के,
हर लोक में छा गया कृष्णा।
छोटा रूप बनाकर यशोदा की,
गोद में समा गया कृष्णा॥

चोरी छुपे अटारी पर चढ़कर,
चोरी से माखन खा गया कृष्णा।
कभी चीर चुराए गोपियों के तो,
कभी मटकी फोड़ गया कृष्णा॥

गोपीयों का नटखट चितचोर,
चोरी में नाम कमा गया कृष्णा।
मीरा का मनमोहन घनश्याम,
राधा का चैन चुरा गया कृष्णा॥

राधा त्याग की राह चली तो,
हर पथ फूल बिछा गया कृष्णा।
राधा ने प्रेम की आन रखी तो,
प्रेम का मान बढ़ा गया कृष्णा॥

कृष्णा के मन भा गई राधा,
राधा के मन समा गया कृष्णा।
कृष्णा को कृष्णा बना गई राधा,
राधा को राधा बना गया कृष्णा॥

Sunday, February 13, 2011

॥ मेरे ज़ज्बात कृष्णा के लिये ॥


मैं अपने जज्बातों को कभी सजा नहीं देता हूँ,
अंधेरा होने पर चिरागों को न बुझने देता हूँ।
जब कभी दिल को कहीं सुकून नहीं मिलता,
तो मुख से नाम कृष्णा का लेकर भुला देता हूँ।

आँसुओ को दुनियाँ के लिये न कभी बहाता हूँ,
दिल की हर बात किसी को न कभी बताता हूँ।
अश्रु तो बहते हैं तो अपने कृष्णा के लिये सिर्फ़,
अगर कोई बात हो तो कृष्णा को ही बताता हूँ।

जान से भी ज्यादा कृष्णा से प्यार करता हूँ,
याद हर पल उसको दिन-रात किया करता हूँ।
जिन राहों पर क्रीड़ा किया करते थे कान्हा,
उन राहों पर सदा मस्तक झुका दिया करता हूँ।

लबों की हर हँसी कृष्णा के नाम कर देता हूँ,
मन की हर खुशी कृष्णा पर कुर्बान कर देता हूँ।
कृष्णा से बिछुड़ने का जब सताता है गम मुझे,
जीवन का हर क्षण कृष्णा को ही अर्पण कर देता हूँ।

Thursday, February 10, 2011

॥ गोविन्द गोपाल गाता चल ॥


गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल।
हम सब राही प्रेम डगर के,
सब पर प्यार लुटाता चल॥

बिना प्रेम के चले न कोई,
बचपन बुढापा या जवानी,
चाहे सुराई नई उम्र की,
चाहे मटकी कोई हो पुरानी।

भक्ति पथ पर चलना तुझको,
मुस्कुरा कर चलता चल,
गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल।

चाँदी की चार दीवारी में,
जहाँ की हर खुशी वीरान है,
जंजीरें सभी कट गईं मगर,
मुक्त हुआ नहीं इन्सान है।

प्यासी है हर इक गागर,
प्रेम गंगा से भरता चल,
गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल॥

संसार नहीं कभी किसी का,
यह न तेरा है न मेरा है,
पराया नहीं कोई जग में,
यह धरती रैन बसेरा है।

सूनी है हर एक गलीयाँ,
पथ पर फूल बिछाता चल,
गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल॥

यह दुनिया केवल है प्रभु की,
हर तट प्रीत की गागर है,
यहाँ हर मन एक मन्दिर है,
हर दिल प्रेम का सागर है।

हर मन्दिर में प्रभु विराजे,
सभी को शीश झुकाता चल।
गोविन्द गोपाल गाता चल,
कृष्णा से प्रीत बढ़ाता चल॥

Tuesday, February 8, 2011

॥ बोलो राधे-राधे श्य़ाम ॥


श्य़ाम-राधे कोई ना कहता,
कहते सभी राधे-श्य़ाम।
जन्म-जन्म के भाग जगा दे,
राधा का एक नाम॥

राधा बिना श्य़ाम है आधा,
गाते रहना राधे-श्य़ाम।
बोलो राधामाधव गिरधारी,
बोलो राधे-राधे श्य़ाम॥

बिन माला जैसे मोती,
बिन दीपक जैसे ज्योति।
चंदा बिना चाँदनी कैसी,
बिन सूरज धूप न होती॥

बिन राधा कहाँ है पूरा,
नटवर नागर का नाम।
बोलो राधारमण बिहारी,
बोलो राधे-राधे श्य़ाम॥

बिन जल के जैसे धारा,
बिन नदी के जैसे किनारा।
साथ जैसे नील गगन के,
सूरज चंदा और है तारा॥

बिन राधा के है अधूरा,
मन वृंदावन भक्ति धाम।
बोलो राधेगोविन्द गोपाल,
बोलो राधे-राधे श्य़ाम॥

राधा नाम भुलाय़ा जिसने,
उसने अपना जन्म गंवाया।
धन्य-धन्य है वाणी उसकी,
जिसने राधा नाम है गाया॥

बिन राधा सुमिरन किये,
नहीं मिलते घनश्याम।
बोलो राधाबल्लभ लाल,
बोलो राधे-राधे श्य़ाम॥

Thursday, February 3, 2011

॥ नाम प्रभु का सदा रहेगा ॥


प्रभु का मन में ध्यान रहेगा,
राधे का जुबां पर नाम रहेगा,
संचार होगा कृष्ण भक्ति का,
तन का सफ़र आसान रहेगा।
न मैं रहुंगा न मेरा रहेगा,
मगर नाम प्रभु का सदा रहेगा॥

जितना कम सामान रहेगा,
जीवन का सफ़र आसान रहेगा,
जितनी भारी कामना की गठरी,
उतना ही तू हैरान रहेगा।
न हम रहेंगे न हमारा रहेगा,
मगर नाम प्रभु का सदा रहेगा॥

प्रभु से मिलन दुष्कर रहेगा,
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा,
हाथ मिलें और दिल न मिलें,
ऐसे में सदा नुकसान रहेगा।
न मैं रहुंगा न मेरा रहेगा,
मगर नाम प्रभु का सदा रहेगा॥

मन्दिर-मस्जिद विवाद रहेगा,
गीता-कुरान में भेद रहेगा,
मुश्किल में इन्सान रहेगा,
बिधि का विधान सदा रहेगा।
न हम रहेंगे न हमारा रहेगा,
मगर नाम प्रभु का सदा रहेगा॥

Wednesday, February 2, 2011

॥ जब कान्हा ही हमारा होगा ॥


जीवन के हर पल में,
प्रभु नाम का सहारा होगा,
जग में किसी के लिये,
कभी कोई पराया न होगा।

सभी के मन के आंगन में,
चांदनी का प्रकाश होगा,
तब एक दिन ऎसा होगा,
जब कान्हा ही हमारा होगा॥

हमेशा दूसरों के लिये हमें,
मोतीयों को चुनना होगा,
हर दिल को हमेशा हमें,
प्रेम जल से सींचना होगा।

काम मुश्किल हमें लगेगा,
मगर फिर भी करना होगा,
तब एक दिन ऎसा होगा,
जब कान्हा ही हमारा होगा॥

अपने दिल को प्रेम दीप से,
हर पल प्रकाशित करना होगा,
किसी के भी दिल में तब,
अज्ञान का अंधकार न होगा।

सभी की आँखों में केवल,
मुहब्बत का सितारा होगा,
तब एक दिन ऎसा होगा,
जब कान्हा ही हमारा होगा॥

रात के सन्नाटे में यह दिल,
तन्हाई का मारा न होगा,
दुश्मन भी इस दिल में हमें,
अपना मित्र लग रहा होगा।

तन की हर एक श्वांस में,
कृष्णा का नाम रम रहा होगा,
तब एक दिन ऎसा होगा,
जब कान्हा ही हमारा होगा॥

Tuesday, January 25, 2011

॥ प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी ॥


कान्हा की छवि अति प्यारी है,
श्याम रंग की शोभा न्यारी है।
उस रूप सुधारस से मन का,
प्याला भर देंगे कभी न कभी।
राधा के मनमोहन घनश्याम,
प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी॥

जो दीनों के परम धाम हैं,
जो केवट और सबरी के धाम है।
ऎसा रूप बनाकर उस घर में,
जा ठहरेंगे हम कभी न कभी।
मीरा के गिरधर गोपाल,
प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी॥

करूणानिधि जिनका नाम है,
जो भवसागर से करते पार हैं।
उनकी करुणा कृपा पाकर,
पार पहुँचेंगे हम कभी न कभी।
गोपीयों के माधव कन्हैया,
प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी॥

द्वार पर उसके खड़े हो जायें,
भक्ति में उसकी दृड़ हो जायें।
हम बिन्दु भी उस सिन्धु में,
मिल जायेंगे कभी न कभी।
करुणा के सागर दीनानाथ,
प्रभु कृपा करेंगे कभी न कभी॥

Monday, January 24, 2011

॥ कृष्ण नाम के हीरे मोती ॥


कृष्ण नाम के हीरे मोती, मैं बिखराऊँ गली गली।
लेलो रे कोई मोहन का प्यारा, शोर मचाऊँ गली गली॥

माया के दीवानों सुन लो, एक दिन ऐसा आएगा।
धन दौलत और माल खजाना, यहीं पड़ा रहा जाएगा॥
सुन्दर काया माटी होगी, चरचा होगी गली गली।
लेलो रे कोई मोहन का प्यारा, शोर मचाऊँ गली गली॥

क्यों करता है मेरा मेरा, यह तो तेरा मकान नहीं।
झूठे जग में फॅंसा हुआ है, वह सच्चा इन्सान नहीं॥
जग का मेला दो दिन का है, अन्त में होगी चलाचली।
लेलो रे कोई मोहन का प्यारा, शोर मचाऊँ गली गली॥

जिन जिन ने ये मोती लूटे, वे तो मालामाल हुए।
धन दौलत के बने पुजारी, आखिर में बेहाल हुए॥
चॉंदी सोने वाले सुन लो, बात सुनाऊँ खरी खरी।
लेलो रे कोई मोहन का प्यारा, शोर मचाऊँ गली गली॥

दुनिया को तू कब तक पगले, अपनी कहता जाएगा।
गोविन्द को तू भूल गया है, अन्त समय पछताएगा॥
दो दिन का यह चमन खिला है, फिर मुरझाए कली कली।
लेलो रे कोई मोहन का प्यारा, शोर मचाऊँ गली गली॥

Sunday, January 23, 2011

॥ निर्मल मन का दर्पण ॥


श्याम नाम के साबुन से, जो मन का मैल छुड़ायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

हर प्राणी में कृष्ण बसे हैं, क्षण भर हम से दूर नहीं।
देख सके न इन आँखों से, इन आँखों में नूर नहीं॥
देंखे वह मन मन्दिर में, जो प्रेम की ज्योति जलायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

मानव शरीर अनमोल है, यह हरि कृपा से पाया है।
जग के प्रपंच में पड़कर, क्यों प्रभु को विसराया है॥
वक्त हाथ से निकल गया तो, अंत समय पछतायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

झूँठ कपट निन्दा को छोड़ें, हर प्राणी से प्यार करें।
घर आये संतो की सेवा से, कभी नहीं इन्कार करें॥
न जाने किस रूप में हमको, नारायण मिल जायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

साधना अभी कच्ची है, जब तक प्रभु पर विश्वास नहीं।
मंजिल पर पहुँचेंगे कैसे, दीप में जब तक प्रकाश नहीं॥
निश्चय है तो भव-सागर से, सहज ही पार हो जायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

संपत्ति का अभिमान है झूठा, यह तो आनी-जानी है।
राजा रंक अनेक हुए, कितनो की सुनी कहानी है॥
प्रभु नाम के प्रिय मंत्र ही, केवल साथ हमारे जायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

Friday, January 21, 2011

॥ कान्हा से प्रीत ॥


कृष्णा से प्रीत बढ़ाने वालों,
प्रभु नाम को जपने वालों,
भाव निष्काम होने पर ही,
कान्हा से प्रीत हुआ करती है।

बुद्धि की बात मानने वालों,
मन की बात न सुनने वालों,
कर्म निष्काम होने पर ही,
कान्हा से प्रीत हुआ करती है।

घड़ियाली आँसू बहाने वालों,
मोतीयों को व्यर्थ लुटाने वालों,
कर्तव्य-कर्म करने पर ही,
कान्हा से प्रीत हुआ करती है।

तन को स्वयं समझने वालों,
धन को अपना समझने वालो,
अश्रु निष्काम बहने पर ही,
कान्हा से प्रीत हुआ करती है।

कान्हा के लिये तड़पने वालों,
जीवन का अर्थ समझने वालों,
शत्रु को मित्र समझने पर ही,
कान्हा से प्रीत हुआ करती है।

भक्ति का अर्थ न जानने वालों,
जीवन को खेल समझने वालों,
माँ-बाप की बात मानने पर ही,
कान्हा से प्रीत हुआ करती है।

मूर्ति को भगवान समझने वालों,
माला को भक्ति मानने वालों,
हर सूरत में ईश्वर देखने पर ही,
कान्हा से प्रीत हुआ करती है।

Monday, January 3, 2011

॥ आईये प्रभु आईये ॥


गोविन्द के गुन गाईये, गोपाल के गुन गाईये,
द्वार मन के खोल कहिये, आईये प्रभु आईये,
आईये प्रभु आईये, आईये प्रभु आईये॥

याद आया याद आया, रात काली मोह माया,
शीर्ष पर आतंक छाया, कंस कारागार काया,
सूर्य आत्मा का हमें, साकार कर दिखलाईये,
आईये प्रभु आईये, आईये प्रभु आईये॥

कालिया का नाम काया, नाग काला नाथ डाला,
नन्द गोकुल में उजाला, दिव्य कर दी गोपी बाला,
मेघ मोहन माधुरी, आनन्द घन बरसाईये,
आईये प्रभु आईये, आईये प्रभु आईये॥

चीर को प्राचीर करिये, धर्म रथ को धीर करिये,
नीति को गंभीर करिये, भीरु नर को वीर करिये,
ज्ञान से विज्ञान से, नर को अमर कर जाईये,
आईये प्रभु आईये, आईये प्रभु आईये॥

गोविन्द के गुन गाईये, गोपाल के गुण गाईये,
द्वार मन के खोल कहिये, आईये प्रभु आईये,
आईये प्रभु आईये, आईये प्रभु आईये॥

Sunday, January 2, 2011

॥ प्रभु हमारे साथ होते हैं ॥


जब भी किसी को दुखी देखकर,
हृदय द्रवित हो जाता है तब,
आंखो से अश्रु बिन्दु झलकते हैं,
तब कृष्ण हमारे साथ होते हैं।

जब भी किसी का प्यार पाकर,
दिल में हलचल मच जाती है तब,
हृदय से भाव-विभोर हो जाता हैं,
तब गोपाल हमारे साथ होते हैं।

जब भी किसी को सुखी देखकर,
दिल प्रफुल्लित हो जाता है तब,
मन में प्रसन्नता छा जाती है,
तब मोहन हमारे साथ होते हैं।

जब भी किसी को संकट में पाकर,
मन विचलित हो जाता है तब,
हृदय प्रेम भाव से भर आता है,
तब श्याम हमारे साथ होते हैं।

जब भी प्रभु को यादों में देखकर,
प्रेम की बदली छा जाती है तब,
मन परम-आनन्दित हो जाता है,
तब नन्दलाल हमारे साथ होते हैं।

Saturday, January 1, 2011

॥ तुम ही तुम हो ॥


प्रभु फरियाद करूँ मैं किससे,
जबकि हर कण में तुम ही तुम हो।
हर प्राणी हर जगह तुम्हारी शक्ति,
हर दिल में तुम ही तुम हो॥

तुम से ही महके मेरा मन आँगन,
तुम से ही झूमें मेरा चितवन।
तुम ही मेरी आत्मा की ज्योति,
जबकि प्रकाश भी तुम ही तुम हो॥

तुम से ही हर छा जाती हैं बहारें,
जबकि फ़िजाओं में तुम ही तुम हो।
हर नजरों में नूर तुम्हारा समाया,
हर नजाकत में तुम ही तुम हो॥

हर वस्तु में तुम्हारा रूप समाया,
तुम से ही यह रंग-बिरंगी छाया।
तुम ही मेरी दिल की हर धड़कन,
जबकि श्वांस भी तुम ही तुम हो॥

तुम से ही हर अमृत बरस रहा,
जबकि हर सुधा तुम ही तुम हो।
हर मन्दिर में छवि छायी तुम्हारी,
हर दिल में सिर्फ़ तुम ही तुम हो॥

हर हृदय में होती चाहत तुम्हारी,
तुम से ही लगती लगन हमारी।
तुम ही मेरी हर प्रार्थना में रहते,
जबकि शब्द भी तुम ही तुम हो॥

तुम से हर श्वांस का साज सजा,
जबकि हर झंकार तुम ही तुम हो।
हर देह तुम्हारी ही सितार बनी,
हर तार गुंजार में तुम ही तुम हो॥

मेरी मन वाणी आत्मा हमारा,
विश्वास दिलाता एहसास तुम्हारा।
तुम ही मेरे दिल के हो दिलबर,
जबकि दिलदार तुम ही तुम हो॥