Sunday, January 23, 2011

॥ निर्मल मन का दर्पण ॥


श्याम नाम के साबुन से, जो मन का मैल छुड़ायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

हर प्राणी में कृष्ण बसे हैं, क्षण भर हम से दूर नहीं।
देख सके न इन आँखों से, इन आँखों में नूर नहीं॥
देंखे वह मन मन्दिर में, जो प्रेम की ज्योति जलायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

मानव शरीर अनमोल है, यह हरि कृपा से पाया है।
जग के प्रपंच में पड़कर, क्यों प्रभु को विसराया है॥
वक्त हाथ से निकल गया तो, अंत समय पछतायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

झूँठ कपट निन्दा को छोड़ें, हर प्राणी से प्यार करें।
घर आये संतो की सेवा से, कभी नहीं इन्कार करें॥
न जाने किस रूप में हमको, नारायण मिल जायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

साधना अभी कच्ची है, जब तक प्रभु पर विश्वास नहीं।
मंजिल पर पहुँचेंगे कैसे, दीप में जब तक प्रकाश नहीं॥
निश्चय है तो भव-सागर से, सहज ही पार हो जायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥

संपत्ति का अभिमान है झूठा, यह तो आनी-जानी है।
राजा रंक अनेक हुए, कितनो की सुनी कहानी है॥
प्रभु नाम के प्रिय मंत्र ही, केवल साथ हमारे जायेंगे।
निर्मल मन के दर्पण में, वह कृष्ण का दर्शन पायेंगे॥