Monday, April 25, 2011

॥ इक दिन यहाँ से जाना है ॥


तन को स्वयं न समझ रे,
यह माटी में मिल जाना है।
चार कांधों की करके सवारी,
ढ़ोल बाजे संग जाना है॥

उड़ जायेगा हँस अकेला,
तन तो माटी बन जाना है।
राधे-कृष्ण निष्काम भज ले,
इक दिन यहाँ से जाना है॥

मात-पिता का कहा मानकर,
नियत कर्तव्य निभाना है।
गुरु वचनों पर श्रद्धा रखकर,
कृष्णा में ध्यान लगाना है।

सत वचनो से निर्मल होकर,
सभी को सुख पहुँचाना है॥
राधे-कृष्ण निष्काम भज ले,
इक दिन यहाँ से जाना है॥

माया के आधीन होकर भी,
गोविन्द को न बिसराना है।
सब में अपने प्रभु को देख,
प्रभु का हुकुम बजाना है॥

प्रभु भक्ति से पावन होकर,
प्रभु चरणों में मिल जाना है।
राधे-कृष्ण निष्काम भज ले,
इक दिन यहाँ से जाना है॥

काम क्रोध मद लोभ त्याग,
मन में आनन्द जगाना है।
जगत की शरण छोड़,
जगदीश शरण में जाना है॥

प्रभु भक्तों का सेवक बन,
पल-पल मौज मनाना है॥
राधे-कृष्ण निष्काम भज ले,
एक दिन यहाँ से जाना है॥